रिकालिस्ट्स = हम अपने आप को इसी नाम से पुकारते है – रिकालिस्ट्स
हम रिकालिस्ट्स भारत के वे साधारण नागरिक हैं जो यह मानते है कि, नागरिको को प्रधानमन्त्री एवं मुख्यमंत्री को पोस्टकार्ड एवं ट्विट भेजकर यह आदेश भेजना चाहिए कि भारत में वोट वापसी प्रक्रियाएं एवं जूरी कोर्ट लागू करने के लिए आवश्यक कानून ड्राफ्ट प्रकाशित किये जाए, ताकि भारत के नागरिक जरूरत पड़ने पर प्रधानमन्त्री, सुप्रीम कोर्ट जज, रिजर्व बैंक गवर्नर, लोकपाल आदि को नौकरी से निकालने के लिए अपनी स्वीकृति दर्ज कर सके। भारत में हम रिकालिस्ट्स 1925 से यह मांग कर रहें हैं।
अहिंसामूर्ती महात्मा चन्द्रशेखर आजाद एवं अहिंसामूर्ती महात्मा सचिन्द्र नाथ सान्याल ने 1925 में अपनी संस्था ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोशिएसन’ के घोषणा पत्र में कहा था कि,
“हम जिस गणराज्य की स्थापना करना चाहते हैं, उसमे नागरिको के पास वोट वापिस लेने का अधिकार होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो लोकतंत्र एक मजाक बन कर रह जाएगा।”
क्यों हम साधारण नागरिक रिकालिस्ट्स बन गए?
तो किस प्रेरणा ने हमें रिकालिस्ट्स बना दिया? हमें नहीं पता कि, किस प्रेरणा ने हमें रिकालिस्ट्स बना दिया। न ही हम यह जानते है कि हमारे द्वारा लिखे गए विवरणों को पढ़कर कई कार्यकर्ता क्यों रिकालिस्ट्स बन गए। न ही हमें इस कारण का कोई अंदाजा कि क्यों 1920 में महात्मा चन्द्रशेखर आजाद रिकालिस्ट्स बन गए, और क्यों 1927 में अहिंसामूर्ती महात्मा भगत सिंह जी रिकालिस्ट बन गए थे। हालांकि इस सम्बन्ध में हमारे पास कोई ठोस कारण नहीं है, कि किस विचार ने हमें रिकालिस्ट्स बनने की प्रेरणा दी। लेकिन जितना हम देख पाते है, हमें इसके दो संभावित कारण नज़र आते है ;
- सहज बोध यानी कॉमन सेन्स (Common sense)
- अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान, सऊदी अरब तथा बांग्लादेश आदि से भविष्य मे होने वाले संभावित युद्ध जिसका सामना भारत को करना पड़ सकता है, का भय।
1. सहज बोध(Common sense):
पहला कारण सीधा सादा सहज बोध है। सामान्य समझ, जो कि हर मनुष्य में स्वाभाविक तौर पर मौजूद होती है। सबसे पहले हम आपसे एक सवाल करना चाहेंगे। यदि आप इस सवाल का जवाब देने से इंकार करते है, तो हम आपको अपनी बात नहीं समझा पाएंगे। इसलिए हमारा आग्रह है कि आप इस सवाल का अपने विवेक से जवाब दें। इसके उपरान्त ही आगे पढ़े। मान लीजिये कि आप एक कारखाने के मालिक है, जिसमे 1000 कर्मचारी और प्रबंधक वगेरह कार्य करते है। और अचानक सरकार निम्नांकित क़ानून लागू कर देती है :
- आप किसी भी प्रबंधक को 60 वर्ष की आयु पूर्ण करने से पहले, तथा किसी भी कर्मचारी को 5 वर्ष से पहले नौकरी से नहीं निकाल सकेंगे
- आपको सभी कर्मचारियों को अगले 5 वर्ष के लिए और प्रबंधको को उनकी 35 वर्षीय सेवाकाल के लिए देय वेतन हेतु अग्रिम भुगतान के चेक देने होंगे।
- यहां तक कि यदि कोई आपके कारखाने से सामान की चोरी कर रहा है तो, किसी न्यायधीश की अनुमति बिना, न तो आप उसे निकाल सकेंगे न ही दंड दे सकेंगे, न ही उसे आपके कारखाने में आने से रोक सकेंगे।
हमारा आपसे सवाल है कि ऐसी स्थिति में ‘अगले 3 महीनो में आपके कारखाने में अनुशासन का स्तर सुधरेगा या बिगड़ेगा’ ?
कृपया इस सवाल का जवाब देने के बाद ही आप आगे पढ़े। हम अपना प्रश्न फिर से दोहराते है : ‘क्या इन कानूनो के आने के बाद, अगले 3 महीनो में आपके कारखाने में कर्मचारियों और प्रबंधको के अनुशासन का स्तर सुधरेगा या बिगड़ेगा’?
दूसरे शब्दों में, यदि हम नागरिको के पास जजो, सांसदों, विधायको, मंत्रियो, प्रशासनिक अधिकारियों आदि को नौकरी से निकालने का अधिकार नहीं हुआ तो, ये सभी पदाधिकारी भ्रष्ट और अनुशासनहीन हो जाएंगे। इसीलिए महात्मा चंद्रशेखर आजाद ने 1925 में कहा था कि वोट वापसी कानूनो के अभाव में लोकतंत्र एक मजाक बन कर रह जाएगा। ठीक यही बात महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के छठे अध्याय के प्रथम पृष्ठ में कही थी कि-
“यदि राजा प्रजा के अधीन नहीं हुआ तो, वह प्रजा को लूट लेगा और राज्य का विनाश होगा।”
जूरी प्रक्रियाएं ग्रीस में 600 ईसा पूर्व लागू हुयी थी। जिसके परिणामस्वरूप ग्रीस अपने आप को इतना ताकतवर बना पाया कि उन्होंने सिर्फ 1 लाख सैनिको की मदद से अपने साम्राज्य का विस्तार तुर्की से लेकर यमुना नदी के किनारे तक कर लिया था। अमेरिका में 1750 ईस्वी में वोट वापसी एवं जूरी प्रक्रियाएं लागू हुई, और यह मुख्य कारण था जिससे अमेरिका इराक, सऊदी अरब, पाकिस्तान और लीबिया को कब्जे में कर पाया। अमेरिका की सूची में अगले नाम ईरान और भारत है। लेकिन किसी सामान्य समझ के व्यक्ति को वोट वापसी एवं जूरी प्रक्रियाओं की उपयोगिता समझने के लिए इतिहास की किताबो के पन्ने पलटने या अमेरिका के उदाहरण देखने की जरुरत नहीं है – क्योंकि वोट वापसी एवं जूरी प्रक्रियाओ का महत्त्व समझने के लिए जिस चीज की आवश्यकता है, वह ‘कॉमन सेन्स’ है।
हमारे देश से जुडी नागरिक समस्याएं किसी भी प्रकार से उस कारखाने की स्थिति से अलग नहीं है, जहां कारखाने के मालिक को अपने कर्मचारियों और प्रबंधको को 5-35 वर्ष तक नौकरी से निकालने का अधिकार नहीं दिया गया है। हमारे देश की समस्याओ का समाधान भी बही है, जो कि अमुक कारखाने की समस्याओ का समाधान है —- ‘भ्रष्ट जजो. अधिकारियों और जनप्रतिनिधियो को नौकरी से निकालने का अधिकार नागरिको के बहुमत को दे दिया जाए।
https://tinyurl.com/Recallistbook इस लिंक पर उपस्थित पुस्तक जूरी प्रक्रियाओ एवं बोट वापसी कानूनो के बारे में है, जिनकी सहायता से भारत के नागरिक “बहुमत का प्रदर्शन करके भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओ को नौकरी से निकाल सकेंगे। पुस्तक में वे विवरण भी दर्ज किये गए है, जिनका पालन करके इन प्रक्रियाओ को जन साधारण देश में लागू करवा सकते हैं।
2. भविष्य मे होने वाले संभावित युद्ध जिसका सामना भारत को करना पड़ सकता है :
दूसरा कारण है, ‘अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान, सऊदी अरब तथा बांग्लादेश आदि से भविष्य मे होने वाले संभावित युद्ध जिसका सामना भारत को करना पड़ सकता है, का भय।‘ जिसने हमें रिकालिस्ट्स बनने के लिए प्रेरित कर दिया। हमारे विचार में, हमें बेहतर सरकार और प्रशासनिक व्यवस्था इसलिए चाहिए ताकि हम युद्ध के दौरान टिके रहे। क्या भारत युद्ध का सामना करने में सक्षम है ? भारत को युद्ध का सामना कब करना पड़ेगा?
इसका जवाब किसी रिकालिस्ट्स के पास भी नहीं है कि भारत को निकट भविष्य में कब युद्ध का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि 1989 में भी कोई नहीं जानता था कि अमेरिका ईराक पर हमला करके उसे लूट लेगा, और 2004 में फिर से हमला करेगा। न ही कोई जानता था कि अमेरिका जनवरी 2010 में लीबिया पर हमला करके उसे लूटेगा। हम निश्चित तौर पर नहीं जानते, कब ? लेकिन हमें यह भय है कि भारत को अंततोगत्वा अपने दुश्मन देशो से युद्ध का सामना करना ही पड़ेगा। इसे टाला नहीं जा सकता। वजह यह है कि जिस देश की सेना हथियारों के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं होती उस देश पर युद्ध आने की सम्भावना बढ़ती जाती है। ऐसी स्थिति में हमारे पास तीन विकल्प उपलब्ध है :
1. भारत न तो हथियारों का आयात करे न ही निर्माण करे।
2. भारत हथियारों का आयात करे।
3. भारत स्वदेशी तकनीक आधारित हथियारों का निर्माण करे।
(1) यदि न तो हम न तो हथियार बनाएंगे न ही आयात करेंगे, तो यह तय कि हम युद्ध बुरी तरह से हार जाएंगे। युद्ध के दौरान भारत का विशिष्ट वर्ग अपने स्वजनो के साथ देश छोड़कर चलें जाएगा, और युद्ध की सारी विभीषिका हम आम नागरिको को भुगतनी पड़ेगी। जैसे कि हमने 1947 में भुगता था। एक अनुमान के मुताबिक़ 1947 में लगभग 10 लाख हिन्दुओ को पाकिस्तान में वीभत्स तरिके से मार दिया गया था। उन्हें जिन्दा जलाया और दफनाया गया, उनके गले काटे गए। 20 लाख से ज्यादा अपहरण हुए, 2 करोड़ को अपना घर-बार छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी, और लगभग 1 करोड़ को धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया। हमारा मानना है कि यदि भारत ने न तो हथियारो का उत्पादन किया न ही आयात किया, तो आने वाले युद्ध में भारत पर 1947 से भी 10 गुना बदतर हालत गुजरेगी।
(2) यदि भारत हथियार नहीं बनाता लेकिन आयात करता है, तो इस नरसंहार को हम कुछ हद तक कम तो कर सकते है लेकिन रोक नहीं सकते। ऐसी स्थिति में हम हथियार निर्यात करने वाली या भारत में आकर हथियार निर्माण करने वाली कम्पनियो के गुलाम हो जाएंगे। हमारा मानना है कि हथियार निर्मात्री कम्पनिया हथियारों पर हमारी निर्भरता को भुनाएगी और हमारे खनिज, तेल-गैस संसाधनो, स्पेक्ट्रम, बैंक्स आदि को अधिगृहीत कर लेगी, हमारी गणित-विज्ञान की शिक्षा को बर्बाद कर देगी और भारत की लगभग पूरी आबादी को ईसाई धर्म में धर्मान्तरित कर देगी।
(3) अत: हमारा तथा हमारे जैसे अन्य रिकालिस्ट्स का मानना है कि भारत को खुद के हथियारो का उत्पादन करना चाहिए। इसलिए भारत के नागरिको को ऐसे शासन की रचना करनी चाहिए जिससे भारत अमेरिका के स्तर के आधुनिक हथियारों का उत्पादन कर सके। हम रिकालिस्ट्स का मानना है कि ऐसे शासन की रचना तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि भारत में प्रधानमन्त्री, सुप्रीम कोर्ट जज, जिला शिक्षा अधिकारी, पुलिस प्रमुख आदि को वोट वापसी पासबुक के दायरे में नहीं लाया जाता।
अत: हम इन सब कानूनो के ड्राफ्ट प्रस्तावित करके ऐसे शासन की रचना करने का सुझाव दे रहे है, जो शासन भारत में भारतीयों द्वारा बड़े पैमाने पर आधुनिक हथियारों का उत्पादन करने में सक्षम हो। हो सकता है की हमारा भय एक अतिशियोक्ति हो, और हो सकता है कि भारत को कभी भी किसी प्रकार के युद्ध का सामना न करना पड़े। लेकिन हमारा मानना है कि अगर भारत को युद्ध करना पड़ सकता है, तो आने वाली तबाही से सिर्फ वोट वापसी पासबुक, रिक्त भूमि कर एवं जूरी कोर्ट कानूनी प्रक्रियाओ को लागू करके ही बचा जा सकता है।
सार रूप में यह कहना उचित है कि युद्ध की आशंका ने ही हम आम नागरिको को रिकालिस्ट्स बनने के लिए प्रेरित किया। क्योंकि भारत की सेना विदेशी हथियारों पर निर्भर होने के कारण हमें भारत के एक ‘विशाल फिलिपिन्स में बदल जाने, या इससे भी बदतर भारत का ‘इराकीकरण’ हो जाने का भय है !!
- विशाल फिलिपिन्स में बदल जाने से आशय – बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिक एवं मिशनरीज फिलीपींस में 1850 के आस पास पहुंचे और उन्होंने अगले 100 वर्ष में पूरे देश को ईसाईयत में कन्वर्ट किया, उनके प्राकृतिक संसाधनों को लूटा, उनकी विज्ञान गणित के ढाँचे को तोड़ा, निर्माण इकाइयां वहां पर शून्य है और वे कुछ नहीं बनाते। आज पूरा देश आयात पर निर्भर है। और यह सब उन्होंने बिना एक भी गोली चलाये किया !!
- इराकीकरण से आशय – सद्दाम ने ऍफ़ डी आई के माध्यम से अमेरिकियों को देश में आने नहीं दिया, अत: ईराक को युद्ध में जाना पड़ा। नतीजा यह है कि, 2003 तक ईराक के ज्यादातर घरो में टीवी और ए सी लगे हुए थे, लेकिन आज वहां 70% घरो में बिजली नहीं है !! 2003 तक ईराक में 4% आबादी ईसाई थी, जो कि आज 15% से ज्यादा हो चुकी है!!
अमेरिका चीन का किला तोड़ने के लिए भारत का इस्तेमाल ऊंट की तरह कर रहा है!!
जैसे जैसे भारत में ऍफ़ डी आई आएगी वैसे वैसे भारत Vs पाकिस्तान+चीन के युद्ध की सम्भावना बढती जायेगी। इसमें भारत की स्थिति एक ऊंट की है, और अमेरिका भारत का इस्तेमाल चीन के खिलाफ एक ऊंट की तरह कर रहा है।
x किले का गेट तोड़ने के लिए Y का इस्तेमाल ऊंट की तरह कर रहा है – यह कहावत कैसे चलन में आई?
गुजराती में एक कहावत है : Z के किले का गेट तोड़ने के लिए X ऊंट के रूप में Y का इस्तेमाल करता है। और यही कहावत यहाँ घटित हो रही है जब हम कहते है कि – अमेरिका ने भारत का किला तोड़ने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल ऊंट की तरह किया, और अब अमेरिका भारत का इस्तेमाल पाकिस्तान एवं चीन को तोड़ने के लिए कर रहा है !!
यह कहावत कैसे अस्तित्व में आयी?
सैकड़ों साल पहले, आक्रमणकारी किले के दरवाजे तोड़ने के लिए हाथियों का इस्तेमाल करते थे। हाथी के सिर पर एक कवच लगाया जाता। हाथी दौड़ता हुआ जाकर अपने सर से दरवाजे पर टक्कर मारता, और दरवाजा टूट जाता। फिर किले वालो ने दरवाजे पर लोहे के 2 फीट लंबे भाले लगाने शुरू कर दिए। अब हाथी दरवाजे को टक्कर मारता तो भाले हाथी के शरीर में घुस जाते और हाथी मर जाता।
आक्रमणकारियों ने नई तरकीब निकाली – उन्होंने हाथी और दरवाजे के बीच ऊंट को रखना शुरू किया। ऊँट को रस्सियों से बांध कर रखा जाता और यह हाथी के साथ चलता था। हाथी ऊंट के शरीर को धक्का मारता जिससे भाले ऊंट के शरीर में घुस जाते। हाथी द्वारा लगाया गया बल दरवाजे को तोड़ देता, लेकिन हाथी को कुछ न होता था। अब किले वालो ने नयी युक्ति लगायी। जब हाथी किले की और आता तो वे एसिड और आग के गोले फेंकना शुरू कर देते। इससे हाथी और महावत आगे नहीं बढ़ पाते थे।
फिर आक्रमणकारीयों ने इसका तोड़ निकाला – उन्होंने ऊंट को प्रशिक्षित करना शुरू किया। ऊंट को कई दिनों तक भूखा रखकर शराब पिलायी जाती। और फिर एक गत्ते से बने दरवाजे पर हमला करने के लिए उकसाया जाता। जब ऊंट दरवाजे से टकराता तो गत्ते का दरवाजा टूट जाता, और इसके एवज में ऊंट को खाना दिया जाता। चूंकि दरवाजा गत्ते से बना होता था, इसीलिए ऊंट को कोई चोट नहीं आती थी। ऊंट के साथ बार बार ऐसा किया जाता था, ताकि ऊंट को इसका अभ्यास हो जाए। ऊंट को भूखा रखा जाता, शराब पिलायी जाती और जब वह गत्ते का दरवाजा तोड़ देता तो उसे खाना दिया जाता। इस तरह ऊंट के दिमाग में यह बात बैठ जाती थी कि दरवाजे से टकराने से उसे कुछ नहीं होता है, बल्कि खाना मिलता है।
और जब युद्ध होता था तो इस प्रकार सधाए गए कई भूखे प्यासे ऊंटों को किले के दरवाजे पर छोड़ दिया जाता था। ऊंट यह सोचकर किले के दरवाजे से जाकर टकराते थे कि उसे कोई चोट नहीं पहुंचेगी। लेकिन युद्ध के दिन दरवाजे से टकराकर ऊंट मर जाता। एक के बाद एक कई सारे ऊंट किले के दरवाजे से टकराते जिससे दरवाजे में दरारे पड़ जाती, और दरवाजा टूट जाता।
तो इस तरह आक्रमणकारी किले के दरवाजे तोड़ने के लिए ऊंट का इस्तेमाल करते थे। और इसी कारण से ये कहावत चलन में आई कि –
कैसे किसी दरवाजे को तोड़ने के लिए किसी का इस्तेमाल ऊंट की तरह किया जाता है।
यह कहावत तब लागू होती है जब A, C को चोट पहुँचाने के लिए B का इस्तेमाल करता है। इस प्रक्रिया में B को सब तरफ से मुफ्त में नुकसान होता है, किन्तु B यह मानकर किले के दरवाजो पर जाकर सिर दे मारता है, क्योंकि उसे यह विश्वास दिला दिया जाता है कि उसे लाभ होगा!!
इसका एक उदाहरण कारगिल युद्ध है। 1997 में वाजपेयी सरकार ने अमेरिका और रूस की इच्छा के खिलाफ जाकर पोखरण-2 किया। और फिर बीमा एवं मीडिया में भी एफडीआई की अनुमति देने से इनकार किया। कुछ राष्ट्रवादियो द्वारा वाजपेयी पर WTO छोड़ने और भारत से अमेरिकी कंपनियों को हटाने का भी दबाव डाला जा रहा था। तब भारत को सबक सिखाने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को उंचाई पर काम आने वाले हथियारों की मदद देना शुरू किया। अमेरिकियों ने पाकिस्तान से वादा किया था कि, यदि वे कारगिल पर चढ़ायी करते है तो उन्हें अमेरिका काफी मदद देगा। अमेरिका ने भारत के गृह मंत्रालय एवं रक्षा विभाग में भी सेंध लगायी और, उस सेटेलाईट को बंद करवाना सुनिश्चित किया जो कारगिल के इलाके पर सर्विलांस रखता था। कारगिल युद्ध के दौरान भारत चोटियों पर कब्ज़ा नहीं कर पा रहा था, और लड़ाई लम्बी खिंच रही थी। भारत के 400 से अधिक सैनिक शहीद हो चुके थे, और हम 4 लड़ाकू विमान खो चुके थे।
और अंत में, वाजपेयी ने अमेरिका की सभी शर्ते मानी – परमाणु परीक्षण कार्यक्रम बंद कर दिया गया, बीमा, बैंकिंग और मीडिया में एफडीआई की अनुमति दी गयी। तब अमेरिका ने पाकिस्तान को आदेश दिया कि वे अपनी सेना कारगिल से हटा लें। लेकिन पाकिस्तान नहीं माना। और तब अमेरिका ने फ्रांस से भारत को लेजर गाइडेड बम देने को कहा। और फिर लेजर गाइडेड बम का इस्तेमाल करते हुए, भारत ने 2-3 सप्ताह के भीतर ही जीत हासिल कर ली।
कुल मिलाकर, अमेरिका ने भारत का किला तोड़ने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल ऊंट की तरह किया था !! और अब जैसा की आप देख रहे है , अमेरिका चीन एवं पाकिस्तान का किला तोड़ने के लिए भारत को ऊंट की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
सर्जिकल स्ट्राइक एवं एयर स्ट्राइक को पेड मीडिया द्वारा जिस तरह से विज्ञापित किया गया है, उससे आप समझ सकते है कि पेड मीडिया द्वारा किस तरह भारत के नागरिको को युद्ध में जाने के लिए तैयार किया जा रहा है। और उनकी यह नीति इसीलिए काम भी करती है क्योंकि पेड मीडिया नागरिको से निम्न तथ्य छिपा लेता है :
- कि इस तरह की स्ट्राइक भारत सिर्फ अमेरिकियों की अनुमति एवं सहयोग से ही करने में सक्षम है।
- कि भारत की सेना अपने 80% हथियार आयात करती है, और हम लड़ने के लिए हथियार जुटाने के लिए अमेरिकियों पर बुरी तरह से निर्भर है। जबकि चीन अपने सभी हथियारों का उत्पादन स्वयं करता है।
- कि यदि हमें यद्ध के दौरान हथियार नहीं मिलते है. या देरी से मिलते है और यदि हमारी सेना रूपी दीवार टूट जाती है तो भारत के 99% नागरिक हथियार विहीन है।
- कि जब भारत का पाकिस्तान से युद्ध होगा तो अपना निवेश बचाने के लिए चीन को युद्ध में आना पड़ेगा। और जैसे ही चीन युद्ध में आता है भारत के पास अपने आप को बचाने के लिए अमेरिकियों की शरण में जाने के सिवाय कोई मार्ग नहीं रहेगा।
- और तब अमेरिका भारत की सेना, जमीन और संसाधनों का इस्तेमाल करके भारत को एक ऐसे युद्ध में धकेल सकता है जिसमे भारत एवं चीन दोनों तबाह हो जायेंगे।
इस तरह पेड मीडिया के प्रायोजक यानी अमेरिकी-ब्रिटिश हथियार निर्माताओ द्वारा भारत के नागरिको को पाकिस्तान की तरफ जाकर टकरा जाने के लिए ऊंटो की तरह सधाया जा रहा है, ताकि वे चीन को तोड़ सके।
पाठको के लिए अभ्यास प्रश्न –
(a) आपके अनुमान में क्या भारत को भविष्य में कभी युद्ध का सामना करना पड़ सकता है ?
(b) यदि भारत को चीन से युद्ध का सामना करना पड़ता है और यदि अमेरिका भारत को हथियारों की मदद देरी से देता है तो आपके विचार में
हमारे पास क्या विकल्प है ?
(c) आपके विचार में किन कानूनों को गेजेट में छापने से भारत स्वदेशी तकनीक आधारित जटिल हथियारों का उत्पादन कर सकता है ?